एनएसडी से पास आउट, पैडमैन और केसरी जैसी फिल्मों में बेहतरीन अभिनय करने वाले “राकेश चतुर्वेदी ओम” हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में जाना पहचाना चेहरा हैं। निर्देशन और लेखक के तौर पर भी निरंतर काम करते रहते हैं। हाल ही में राकेश ओम द्वारा निर्देशित फिल्म “मंडली” रिलीज़ हुई। जिसे सिनेमा घरों में भरपूर प्यार मिला, फिल्म को जल्द ही ओटीटी प्लेट फॉर्म पर देख सकते हैं। प्रस्तुत है हाल में राकेश चतुर्वेदी ओम से हुई राजप्रताप सिंह की बातचीत के कुछ अंश:
Q1, आप बेहतरीन कलाकार हैं, फिर आपने फिल्म निर्देशक के तौर पर करियर बनाने के बारे में क्यों सोचा?
A1, एक्चुली फिल्म निर्देशन करियर के तौर पर कहो तो, ऐसा कुछ सोचा नही था। आपके सामने सर्वाइविंग की परेशानी होती है, मैंने कास्टिंग डायरेक्टर और प्रोडेक्शन में भी असिस्ट किया है। जब मैं बतौर एक्टर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से पास आउट होकर मुंबई आया। उस समय ऐसा दौर था कि टीवी में लम्बे चौड़े 6 फुट के एक्टर, मॉडल लडकों को ज्यादा काम मिलता था, चाहे विल्लन हो या हीरो। जैसा काम करना चाह रहा था वैसा मिल नही रहा था। जैसा काम वो दे रहे थे, वो मैं करना नही चाह रहा था। सर्वाइविंग के लिए मैंने बहुत सारी चीज करना शुरू की, असिस्ट किया मैंने डायरेक्टरस को, पैसा पाने के चक्कर में किया कि किसी भी तरह से सर्वाइविंग करूं साथ मैं थियेटर करता था। हो सकता है थियेटर करते-करते सिनेमा में अच्छे रोल मिलेंगे। किस्मत ये सारी तैयारी करवा रहीं थीं मुझे डायेक्टर बनाने के लिए। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से पास आउट था, तो लोगों को एक्टिंग सीखने का मौका भी मिला। दिलीप शुक्ला जी को भी असिस्ट करने का मौका मिला। वो करते-करते हर तरीके की तैयारी हो रही थी। मेरे स्टूडेंट के बड़े भाई ने अपने भाई के लिए “बोलो राम” फिल्म बना रहे थे इस फिल्म के जरिए मुझे चांस मिला। राजपाल यादव, ओम पूरी, मनोज पाहवा और नसीरुद्दीन शाह जैसे बड़े कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला।
Q2, सर एनएसडी के बारे में कुछ खास बात बताइए?
A2, एनएसडी, मैंने फिल्म एक्टर बनने के लिए ज्वाइन किया। ज्वाइन करने के बाद लगा की थियेटर में मज़ा है, और मेरे अन्दर परिवर्तन हुआ। वहां पहुचने के बाद पता चला की रंगमच क्या है। कानपुर में थियेटर करता था और सोचता था की किसी तरह एनएसडी पहुच जाऊ फिर मुंबई पहुँच जाऊं। एनएसडी में 3 साल ट्रेनिंग के दौरान आत्मविश्वास मिला। मुझे लगता है हर संस्थान आपके अन्दर आत्मविश्वास भर देता है। उसके बाद लगता है यू केन डू इट। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा एक बेहतरीन जगह है, वहां से हर कलाकार को सीखना चाहिए, ताकि उसके अन्दर डिसिप्लेन और अपने काम के प्रति सम्मान पैदा हो।
Q3, एक डायरेक्टर को अच्छी स्टोरी से लेकर फिल्म रिलीज़ करने तक, किन-किन बातों का ध्यान रखना पड़ता है?
A3, उसको मार्केट का ख्याल रखना पड़ता है। फिल्म को शूट कैसे करेगा उसकी रिकवरी कैसे होगी। समय के अनुसार फिल्म शूट करे। उसके प्रोड्यूसर ने जो बजट दिया है उसका ध्यान रखे। उसकी जिम्मेदारी है इतने में काम खत्म करे। अभिनेता और पूरी टीम से काम निकलवाने की कोशिश करे। अच्छी स्टोरी सर्च करनी पड़ती है लेकिन फिल्म बनने के बाद ही पता चलता है कहानी अच्छी है या बुरी। सब अपने हिसाब से अच्छा बना रहे होते हैं।
Q4, फिल्म की कहानी को लिखने के कुछ टिप्स बताइए?
A4, कहानी कोई भी हो, उसको स्क्रीन पर कैसे कहना है ये बहुत इम्पोर्टेंट है। दर्शकों और श्रोतायों को कहानी कनेक्ट करे। पूरी कहानी मनोरंजन हो। कहानी के अन्दर कोई एक बात ऐसी कहें जिससे सोसाइटी को सन्देश देने की जरुरत है। उद्देशात्मक न बनाएं, मनोरंजन के साथ कहें, अच्छी कहानी हमेशा आपके आस पास मिलेगी आपके जीवन में। जिस घटना से आप क्लिक कर पायेंगे उसी घटना को कहानी का रूप दे दें।
Q5, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में इंग्लिश आना जरुरी है?
A5, आये तो अच्छा है, नहीं भी आये तो भी अच्छा है। आत्मविश्वास पर कमान रखिये सम्मान के साथ काम कीजिए। बहुत सारे ऐसे डायरेक्टर और एक्टर हैं जो हिंदी में बात और काम करते हैं आज सक्सेसफुल हैं कोई ऐसा जरुरी नही हैं। अगर इंग्लिश आती है, तो आपके लिए बेहतर ही होगा। आप उससे अपनी बात को इंटरनेशनली कह सकते हैं।
Q6, सर आपने एज़ अ एक्टर निर्देशकों के निर्देश में अभिनय किया है और एज़ अ डायरेक्टर एक्टरों से अभिनय भी करवाया है, दोनों में क्या समानताएं हैं?
A6, दोनों में समानता ये हैं, बतौर एक्टर समझ जाता हूँ कि निर्देशक क्या चाहता है। निर्देशक के तौर पर कलाकारों से काम कैसे निकलवाना है। एक्टर कितना सेंसटिव होता है ये भी समझ गया, डायरेक्टर कितनी परेशानी में होता है ये भी समझ गया।
Q7, फिल्म केसरी में रोल कैसे मिला, इसके बारे में बताएं?
A7, मैं नसीरुद्दीन साहब के साथ थियेटर करता रहता हूँ, कास्टिंग डायरेक्टर जोगी भाई जो खुद थियेटर करते हैं, बहुत अच्छे कास्टिंग डायरेक्टर हैं। उन्होंने मेरे प्ले देखे हैं, उन्होने मेरे बारे में फिल्म निर्देशक अनुराग सिंह को बताया कि एक बार इस लड़के को ट्राई करके देख सकते हैं। उन सब ने आकर मेरा प्ले देखा उसके जरिए मुझे काम मिला।
Q8, सर मैंने सुना है फिल्म बनाना आसान है लेकिन रिलीज़ करना मुश्किल है, इस बात में कितनी सच्चाई है।
A8, बहुत ही सच बात है और अटल सत्य है। आपने कहानी लिखी, प्रोड्यूसर को सुनाया। उसे पसंद आई प्रक्रिया आगे बड़ी। टीम इकट्ठी हुई पैसा लगाया शूट की। अब आपके सामने प्रमोशन और रिलीज की परेशानी है। छोटी फिल्मों के सामने ये बहुत बड़ी मुश्किल है, शो मिलेंगे या नहीं मिलेंगे। इसके लिए मैं बोल भी चूका हूँ। थियटर वालों के साथ ये मैंडेटरी हो जाए की शुरुआत के तीन दिन शो मिले अगर तीन दिन में फिल्म अच्छा परफॉरमेंस नहीं कर रही है तो हटा दें। छोटे फिल्म के प्रोड्यूसर को करेक्ट डिस्ट्रीब्यूटर नही मिल पाते हैं या फिल्म के प्रोमोशन का पैसा नहीं होता है। जितना अमाउंट फिल्म में शूट के खर्च हुए हैं उतना ही अमाउंट प्रमोशन के लिए रखना चाहिए। बड़ी फिल्मों के आमने-सामने की परेशानी होती है कि सामने कौन सी फिल्म आ रही है
Q9, नए-नए कलाकारों को क्या सन्देश देना चाहेंगे?
A9, नए-नए कलाकार चमकती-दमकती दुनिया को देखकर न आयें। ये चमकती-दमकती दुनिया नहीं है यहाँ बहुत मेहनत है। किसी भी क्षेत्र में आयें मायानगरी की में, उसकी शिक्षा लेकर आयें, अगर अभिनेता हैं तो लगातार अभ्यास करें, कहानियों का मंथन या थियटर में नाटक करते रहें। कभी किसी के पास काम मांगने न जायें। अपने लिए काम खुद क्रिएट करें, और लोगों को बताएं मैं ये काम कर रहा हूँ। ये हर जगह का रुल है भूखे पेट आदमी को कुछ नही मिलता, लेकिन जिसका पेट भरा होता है उसको हर कोई देना चाहता है।
Q10, आपके नेक्स्ट प्रोजेक्ट कौन-कौन से हैं?
A10, एक्टर और निर्देशक के 4-5 प्रोजेक्ट आ रहे हैं, इसमें फिल्म और वेब सीरीज शामिल हैं
Write a comment ...